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PDF Title : | Atmanubhuti Ke Khule Rahasya (Swami Vivekananda) |
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Total Page : | 70 Pages |
Author: | Swami Vivekanand |
PDF Size : | 1,359 KB |
Language : | Hindi |
Source : | indianpdf |
PDF Link : | Available |
Summary
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Atmanubhuti Ke Khule Rahasya (Swami Vivekananda) – Hindi
प्रस्फुरित होकर क्या होगा? क्या पुनः वैदिक यज्ञधूम से भारत का आकाश मेघावृत होगा, अथवा पशुरक््त से रंतिदेव की कीर्ति का पुनरुद्दीपन होगा? गोमेध, अश्वमेध, देवर द्वारा सुतोत्पत्ति आदि प्राचीन प्रथाएँ पुनः प्रचलित होंगी अथवा बौद्ध काल की भाँति फिर समग्र भारत संन्यासियों की भरमार से एक विस्तीर्ण मठ में परिणत होगा?
मनु का शासन क्या पुनः उसी प्रभाव से प्रतिष्ठित होगा अथवा देशभेद के अनुसार भक्ष्याभक्ष्यविचार का ही आधुनिक काल के समान सर्वतोमुखी प्रभुत्व रहेगा? क्या जातिभेद गुणानुसार (गुणगत) होगा अथवा सदा के लिए वह जन्म के अनुसार (जन्मगत) ही रहेगा? जातिभेद के अनुसार भोजनसंबंध में छुआछूत का विचार बंगदेश के समान रहेगा अथवा मद्रास अदि प्रांतों के समान कठोर रूप धारण करेगा या पंजाब आदि प्रदेशों के समान यह एकदम दूर हो जाएगा?
भिन-भिन्न वर्णों का विवाह मनु द्वारा बतलाये हुए अनुलोमक्रम से – जैसे नेपालादि देशों में आज भी प्रचलित है – पुन: सारे देश में प्रचलित होगा अथवा बंग आदि देशों के समान एक वर्ण के अवांतर भेदों में ही प्रतिबद्ध रहेगा? इन सब प्रश्नों का उत्तर देना अत्यंत कठिन है। देश के विभिन प्रांतों में, यहाँ तक कि एक ही प्रांत में भिन््न-भिन्न जातियों और वंश के आचारों की घोर विभिनता को ध्यान में रखते हुए यह मीमांसा और भी कठिन जान पढ़ती है।
तब क्या होगा? जो हमारे पास नहीं है, शायद जो पहले भी नहीं था, जो यवनों के पास था, जिसका स्पंदन यूरोपीय विद्युदाधार (डाइनामो) से उस महाशक्ति को बड़े वेग से उत्पनन कर रहा है, जिसका संचार समस्त भूमंडल में हो रहा है, हम उसी को चाहते हैं। हम वही उद्यम, वही स्वाधीनता की प्रीति, वही आत्मावलंबन, वही अटल धैर्य, वही कार्यदक्षता, वही = एकता और वही उनतितृष्णा चाहते हैं। बीती बातों की उधेड़- बुन छोड़कर अनंत एक विस्तारित अग्रसर दृष्टि की हम कामना करते हैं और सिर से पैर तक की सब नसों में बहने वाली रजोगुण की उत्कट इच्छा रखते हैं।