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PDF Title : | J. Krishnamurti – Ek Jeevani |
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Total Page : | 254 Pages |
Book By: | Lutyens, Mary |
PDF Size : | 2.32 MB |
Language : | Hindi |
Source : | jkrishnamurti.org |
PDF Link : | Available |
Summary
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J. Krishnamurti – Ek Jeevani – Hindi
भारत में सभी पुरानी जगहों पर उनकी वार्ताएं हुईं, इसके अलावा कलकत्ता में पहली बार उनकी चार वार्ताएं हुईं जो बहुत सफल रहीं।
इस सबके अलावा बरसों से उनके चारों तरफ रह रहे लोगों के समूह के साथ उनकी अंतहीन परिचर्चाएं होती रहीं। इनमें शामिल थीं पुपुल जयकर, सुनंदा और पामा पटवर्धन तथा पामा के बड़े भाई अच्युत, और एक प्रतिष्ठित बौद्ध विद्वान पंडित जगन्नाथ उपाध्याय।
यूरोप और अमेरिका में “के” बिस्तर में ही नाश्ता लेते थे और अगर कोई मुलाकात तय न हो तो वह देर सुबह तक नहीं उठते थे। जबकि भारत में वह अपने मित्रों के साथ नाश्ता करते थे और बातचीत तभी शुरू हो जाया करती थी।
किसी दार्शनिक या धार्मिक विषय में पैठने का भारत में यही पसंदीदा तरीका था कि कई व्यक्ति किसी परिचर्चा में शामिल हो रहे हैं और प्रश्न पूछ रहे हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि बौद्धिक समझ के वास्ते यह तरीका सबसे बढ़िया था, लेकिन इसमें एक बड़ी कमी जो खटकती थी वह थी अंतर्बोध की वे छलांगें जिनके द्वारा कुछ लोग “के” की बातों को अधिक सहजता से ग्रहण कर पाते थे।
के” स्वयं भारत की इन परिचर्चाओं से उत्साहित महसूस करते थे। अपने दर्शन में धीरे-धीरे, तर्क के साथ एक-एक कदम आगे बढ़ना उन्हें अच्छा लगता था।
कही गयी हर बात पर प्रश्न करना, यह भी एक भारतीय दृष्टिकोण था। “के” इससे पूर्णतया सहमत थे, क्योंकि उनकी दृष्टि में भी आस्था अथवा किसी के शब्दों को आंख मूंदकर स्वीकार कर लेना स्वबोध एवं सत्यान्वेषण के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा थी।