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PDF Title : | Musafir Cafe |
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Total Page : | 108 Pages |
Book By: | Divya Prakash Dubey |
PDF Size : | 679 KB |
Language : | Hindi |
Source : | hindyugm.com |
PDF Link : | Available |
Summary
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Musafir Cafe – Hindi
“इसके बाद दोनों कुछ बोल नहीं पाए। चंदर को लगा अब जाकर उसका घर छूटा है। बिना खाए अपने कमरे में चला गया। उधर सुधा फोन रखने के बाद अपने घर में अपने बिस्तर पर चंदर को बहुत देर तक ढूँढ़ती रही। सुधा ने झूठ बोलकर चंदर को आजाद कर दिया था।”
“वो सही में चाहती थी कि वो अपना पागलपन ढूँढ़कर जी पाए। अपने इस झूठ के लिए वो रात भर रोती रही। उधर चंदर भी रात भर रोता रहा। दुनिया की सारी उदासी चंदर और सुधा ने उस दिन आपस में बाँट ली थी। जो भी रातें रोते हुए गुजरती हैं वो अगले दिन सुबह जरूर कुछ अलग लेकर आती हैं।”
“सुबह उठते ही चंदर ने पम्मी को कहा कि उसे बहुत जोर से भूख लग रही है वो कुछ बनाकर खिलाए। न पम्मी ने पिछली रात के बारे में कुछ पूछा न चंदर ने बताया। किसी के जाने के बाद हम इस उम्मीद में नॉर्मल बिहैव करने लगते हैं कि एक दिन नॉर्मल दिखने का नाटक करते-करते सही में ठीक वैसे ही नॉर्मल हो जाएगा जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं था।”
“कई चोटें इसलिए निशान छोड़कर जाती हैं ताकि हम अपनी सब गलतियाँ भूल न जाएँ। गलतियाँ सुधारनी जरूर चाहिए लेकिन मिटानी नहीं चाहिए। गलतियाँ वो पगडंडियाँ होती हैं जो बताती रहती हैं कि हमने शुरू कहाँ से किया था।”
“मुसाफ़िर कैफे का काम तेजी से शुरू हो गया था। चंदर ने ट्रैक पे जाना शुरू कर दिया था। उसके पास अभी भी साल भर का खर्च निकालने भर की सेविंग थी। तमाम किताबें जिनको वो खरीद के भूल चुका था उसने दुबारा पढ़ना शुरू कर दिया था।”